नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणे पठेत् सर्वदा भर्गभावानुरक्तः । ब्रह्म – कुल – वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट – वेषं, विभुं, वेदपारं । एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं https://jaredjnstj.qowap.com/89296660/everything-about-shiv-chalisa-lyrics-in-english